बस जाग गई, धीरे से उसकी चूत के अंकुर को तब तक रगड़ते हुए जब तक वह गीली नहीं हो गई
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bas jag gee, dhire se uski choot ke ankur ko tab tak ragarte hue jab tak vah gili nahin ho gee
बस उस अनूठा सुबह के आग्रह के साथ जाग गया । वह धीरे से खुद को रगड़ना शुरू करती है, प्रत्येक स्पर्श के साथ गर्माहट बढ़ने का एहसास करती है। धीरे-धीरे, वह गीली हो जाती है और अधिक उत्तेजित हो जाती है, हर पल की खुशी का स्वाद लेती है। सुबह के इस अंतरंग आनंद को याद मत करो
1 महीना पूर्व
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